Tuesday 8 March 2016

पितृ दोष


वह दोष जो पित्तरों से सम्बन्धित होता है पितृदोष कहलाता है। यहाँ पितृ का अर्थ पिता नहीं वरन् पूर्वज होता है। ये वह पूर्वज होते है जो मुक्ति प्राप्त ना होने के कारण पितृलोक में रहते है तथा अपने प्रियजनों से उन्हे विशेष स्नेह रहता है। श्राद्ध या अन्य धार्मिक कर्मकाण्ड ना किये जाने के कारण या अन्य किसी कारणवश रूष्ट हो जाये तो उसे पितृ दोष कहते है।
विश्व के लगभग सभी धर्मों में यह माना गया है कि मृत्यु के पश्चात् व्यक्ति की देह का तो नाश हो जाता है लेकिन उनकी आत्मा कभी भी नहीं मरती है। पवित्र गीता के अनुसार जिस प्रकार स्नान के पश्चात् हम नवीन वस्त्र धारण करते है उसी प्रकार यह आत्मा भी मृत्यु के बाद एक देह को छोड़कर नवीन देह धारण करती है।
हमारे पित्तरों को भी सामान्य मनुष्यों की तरह सुख दुख मोह ममता भूख प्यास आदि का अनुभव होता है। यदि पितृ योनि में गये व्यक्ति के लिये उसके परिवार के लोग श्राद्ध कर्म तथा श्रद्धा का भाव नहीं रखते है तो वह पित्तर अपने प्रियजनों से नाराज हो जाते है।
समान्यतः इन पित्तरों के पास आलौकिक शक्तियां होती है तथा यह अपने परिजनों एवं वंशजों की सफलता सुख समृद्धि के लिये चिन्तित रहते है जब इनके प्रति श्रद्धा तथा धार्मिक कर्म नहीं किये जाते है तो यह निर्बलता का अनुभव करते है तथा चाहकर भी अपने परिवार की सहायता नहीं कर पाते है तथा यदि यह नाराज हो गये तो इनके परिजनों को तमाम कठनाइयों का सामना करना पड़ता है।
पितृ दोष होने पर व्यक्ति को जीवन में तमाम तरह की परेशानियां उठानी पड़ती है जैसे घर में सदस्यों का बिमार रहना मानसिक परेशानी सन्तान का ना होना कन्या का अधिक होना या पुत्र का ना होना पारिवारिक सदस्यों में वैचारिक मतभेद होना जीविकोपार्जन में अस्थिरता या पर्याप्त आमदनी होने पर भी धन का ना रूकना प्रत्येक कार्य में अचानक रूकावटें आना सर पर कर्ज का भार होना सफलता के करीब पहुँचकर भी असफल हो जाना प्रयास करने पर भी मनवांछित फल का ना मिलना आकस्मिक दुर्घटना की आशंका तथा वृद्धावस्था में बहुत दुख प्राप्त होना आदि। बहुत से लोगों की कुण्डली में कालसर्प योग भी देखा जाता है वस्तुतः कालसर्प योग भी पितृ दोष के कारण ही होता जिसकी वजह से मनुष्य के जीवन में तमाम मुसीबतों एवं अस्थिरता का सामना करना पड़ता है।
पितृ दोष के निवारण के उपाय
वर्तमान समय में समान्यतः हर मनुष्य कड़ी प्रतिस्पर्धा एवं अति व्यस्तता के कारण अपने माता पिता, बड़े बुजर्गो तथा पित्तरों की चाहे अनचाहे अनदेखा कर देता है। उसका धर्म के विरूद्ध आचरण, गुरू की पत्नी, पुत्री या अन्य स्त्री से अनैतिक सम्बन्ध, माँस मदिरा का सेवन करना, किसी को बेवजह सताना, उधार लेकर धन वापस न करना, दूसरो का धन हड़पना, झूठी गवाही देना, प्रभु, पित्तरों के नाम से दान ना देना आदि पितृ दोष के कारण बनते है। व्यक्ति के मरने के बाद इन कर्मों के कारण दोबारा जन्म लेने पर उसकी कुण्डली में पितृ दोष होता है। पितृ दोष के कारण व्यक्ति को वंशानुगत, मानसिक एवं शारीरिक घोर कष्ट प्राप्त होते है।
कभी-कभी व्यक्ति की जन्म कुण्डली में उत्तम ग्रह योग होते है व्यक्ति बहुत परिश्रम भी करता है उसके घर का वास्तु भी ठीक होता है, वह धर्म का पालन भी करता है परन्तु फिर भी वह जीवन में अस्थिरता, परेशानियां, घर में बीमारी, कलह, धन की न्यूनता या खूब धनार्जन के बाद भी अत्याधिक खर्चा, अचानक अपयश, विवाह में विलम्ब आदि से पीड़ित रहता है तो इसका अर्थ है कि वे वर्तमान समय कलयुग के सबसे घातक दोष पितृ दोष से पीड़ित है।
संसार के सभी धर्मों में पित्तरों को अति महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है, हिन्दू धर्म में तो पित्तरों को देवतुल्य माना गया है। आप चाहे किसी भी धर्म को मानने वाले हो घर में प्रत्येक नवीन एवं शुभ कार्य में सर्वप्रथम पित्तरों का स्मरण करके उनसे आशीर्वाद लेकर ही कार्य प्रारम्भ करना चाहिए तब उस कार्य में कभी भी किसी प्रकार का अवरोध उत्पन्न नही होता है।
पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति को प्रतिदिन शिव लिंग पर जल चढ़ाकर महामृत्यूंजय का जाप करना चाहिए । माँ काली की नियमित उपासना से भी पितृ दोष में लाभ मिलता है। कौएं तथा पीपल के वृक्ष को पित्तरों का प्रतीक माना गया है अतः मनुष्यों द्वारा रविवार को छोड़कर पीपल के जड़ में प्रतिदिन सादा जल एवं शनिवार को दूध, शहद मिश्रित जल देने से तथा कौओं को नित्य रोटी खिलाने से भी बहुत लाभ मिलता है।
पितृ दोष निवारण के लिये यदि कोई व्यक्ति सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ पर मीठा जलए मिष्ठान एवं जनेऊ अर्पित करते हुये “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाएं नमः” मंत्र का जाप करते हुये 108 परिक्रमा करे तत्पश्चात् अपने अपराधों एवं त्रुटियों के लिये क्षमा मांगे तो पितृ दोष से उत्पन्न समस्त समस्याओं का निवारण हो जाता है।
शास्त्रो के अनुसार प्रत्येक अमावस्या को पित्तर अपने घर पर आते है अतः इस दिन हर व्यक्ति को यथाशक्ति उनके नाम से दान करना चाहिएए इस दिन बबूल के पेड़ पर संध्या के समय भोजन रखने से भी पित्तर प्रसन्न होते है। प्रत्येक अमावस्या को गाय को पांच फल भी खिलाने चाहिए।
आप चाहे किसी भी धर्म को मानते हो घर में भोजन बनने पर सर्वप्रथम पित्तरों के नाम की खाने की थाली निकालकर गाय को खिलाने से उस घर पर पित्तरों का सदैव आशीर्वाद रहता है घर के मुखियां को भी चाहिए कि वह भी अपनी थाली से पहला ग्रास पित्तरों को नमन करते हुये कौओं के लिये अलग निकालकर उसे खिला दे। प्रत्येक मौसम का नया फल सर्वप्रथम किसी भी धार्मिक स्थान या निर्धन व्यक्ति को पित्तरो का स्मरण करके देने से भी पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते है।
इस संसार के प्रत्येक मनुष्य को अपने-अपने पित्तरों का उनकी बरसी तथा पितृ पक्ष में श्राद्ध एवं तर्पण करके यथासम्भव निर्धनों एवं धार्मिक स्थल में दान देने से भी पित्तर बहुत बहुत प्रसन्न होते है।
पित्तरों को मोक्ष प्रदान करने के लिये पिण्डदान करना चाहिए, शरीर को पिण्ड का प्रतीक माना गया है, पिण्ड का अर्थ है गोलाकार। पिण्डदान करने के लिये जौ, चावल के आटे को गूंदकर गोलाकार पिण्ड बनाया जाता है या पके हुये चावल को मसलकर भी पिण्ड बनाते है। हिन्दू धर्म में गया, कुरूक्षेत्र, पुष्कर, हरिद्वार, वाराणसी में पिण्डदान का बहुत महत्व बताया गया है वस्तुतः पिण्डदान को मोक्ष प्राप्ति का सरल मार्ग भी कहा गया है। पितृ पक्ष में श्रद्धा एवं भक्ति के साथ नियमपूर्वक अपने समस्त पित्तरों का श्राद्ध करने, तर्पण करने एवं उनके निमित दान-पुण्य करने पर से भी पित्तर प्रसन्न होकर, आशीर्वाद देकर मनुष्य के जीवन के समस्त कष्टों का निवारण करते है।

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